पतंजलि योग सूत्र : समाधि पाद। Patanjali Yog Sutra
समाधि पाद – ५१ सूत्र | |
1 | अथ योगानुशासनम् !१! |
2 | योगश्चित्त वृत्तिनिरोधः !२! |
3 | तदा द्रष्टुः स्वरूपेवस्थनम् !३! |
4 | वृत्ति सारूप्यमितरत्र !४! |
5 | वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः !५! |
6 | प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः !६! |
7 | प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि !७! |
8 | विपर्ययो मिथ्याग्यानंतद्रूपपप्रतिष्ठम् !८! |
9 | शब्दज्ञानानुपती वस्तुशून्यो विकल्पः !९! |
10 | अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा !१०! |
11 | अनुभूतविषयासंप्रमोषः स्मृतिः !११! |
12 | अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः !१२! |
13 | तत्र स्थितौ यत्नौअभ्यासः !१३! |
14 | स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः !१४! |
15 | दृष्तानुश्रविकाविष्यवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम् !१५! |
16 | तत्परं पुरूष्ख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम् !१६! |
17 | वितर्कविचारानन्दास्मितारूपानुगमात्संप्रज्ञातः !१७! |
18 | विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः संस्कारषेशोन्यः !१८! |
19 | भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम् !!१९! |
20 | श्रद्धाविर्यस्मृतिसमाधिप्रज्ञा पूर्वक इतरेषाम् !२०! |
21 | तीव्रसंवेगानामासन्नः!२१! |
22 | मृदुमध्याधिमात्र त्वात्ततोपिविशेषः !२२! |
23 | ईश्वर्प्रनिधानाद्वा !२३! |
24 | क्लेशकर्मविकाशयैर्परामृष्टः पुरुषविषेश ईश्वरः !२४! |
25 | तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजम् !२५! |
26 | पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् !२६! |
27 | तस्य वाचकः प्रणवः!२७! |
28 | तज्जपस्तदर्थभावनम् !२८! |
29 | ततः प्रत्येक्चेतनाधिगमोप्यन्तरायाभावश्च !२९! |
30 | व्यधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभारान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेन्तरायाः!३०! |
31 | दुखदौर्मनस्याङ्ग्मेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः !३१! |
32 | तत्पतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः!३२! |
33 | मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुखपुण्यापुण्यविषयाणांभावनातश्चित्तप्रसादनम् !३३! |
34 | प्रच्छदर्न्विधार्णाभ्यां वा प्राणस्य!३४! |
35 | विषयवती वा प्रवृतिरुत्पन्ना मनसः स्थितिनिबन्धनी!३५! |
36 | विशोका वा ज्योतिष्मती!३६! |
37 | वीतरागविषयं वा चित्तम् !३७! |
38 | स्वपननिद्राज्ञानालम्बनं वा !३८! |
39 | यथाभिमतध्यानाद्वा!३९! |
40 | परमाणुपरममहत्त्वन्तोस्य वशीकारः!४०! |
41 | क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राहयेषुतत्स्त्तजनतासमापत्तिः!४१! |
42 | तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः!४२! |
43 | स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूप्शून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितर्का!४३! |
44 | एतयैव सविचारा निर्विचारा च् सुक्ष्मविष्या व्याख्याता !४४! |
45 | सूक्ष्मविषयत्वं चालिङ्गपर्यवसानम् !४५! |
46 | ता एव सबीजः समाधिः !४६! |
47 | निर्विचार्वैशारद्येध्यात्म्प्रसादः! ४७! |
48 | ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा !४८! |
49 | श्रुतानुमानप्रग्याभ्यामन्यविषया विशेषार्थत्वात् !४९! |
50 | तज्जः संस्कारोन्यसंस्कारप्रतिबन्धी !५०! |
51 | तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजः समाधिः !५१! |