Unit 4 Communication ( संचार) NTA UGC NET JRF Paper 1

Unit 4 संचार : परिचय, अर्थ, परिभाषा प्रकार आदि

संचार(Communication)  का अर्थ दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों विचारों, अनुमानो या संगों (Emotions) के पारस्परिक आदान-प्रदान से  है।
 वर्तमान समय में तार, टेलीफोन, टेलीविजन तथा रेडियो आदि ने विचारों के संचार को अधिक सुलभ बना दिया है, परन्तु मे सभी साधन स्वयं संचार नहीं है। 
चार्ल्स ई रेडफॉल्ड (Charles E. Redfield) के अनुसार संचार से आशय मानवीय तथ्यों एवं विचारों के पारस्परिक विनिमय से है, न कि टेलीफोन, तार, रेडियो आदि तकनीकी साधनों से यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सफल संचार हेतु सूचना देने वाला और सूचना पाने वाला विषय वस्तु का एक-सा अर्थ-बोध करने में समर्थ हो सके किसी व्यक्ति द्वारा कोई बात देना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि आवश्यकता इस बात की भी होती है कि सूचना पाने वाला सूचना को उसी प्रकार प्राप्त कर एवं उसका यही अर्थ लगाये जो सूचना देने वाले का है।
 यद्यपि किसी तथ्य पर कहते और सुनने में मतैक्य होना आवश्यक नहीं है. परन्तु संचार हेतु उन दोनों ही व्यक्तियों को सम्बन्धित तथ्य या सूचना का एक-सा अर्थ समझना आवश्यक है।

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परिभाषाएं: -
 बेन्स्टर शब्दकोश के अनुसार, "संचार से आशय-शब्दों, पत्रो अथवा सन्देशों द्वारा समागम, विचारों एवं सम्मितियों का विनिभय है।" 
लुइस ए ऐलन के अनुसार, "संचार में वे सभी चीजें सम्मिलित की जाती है जिनके माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बात दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में डालता है। 
यह अर्थ का पुल है। इसके अन्तर्गत कहने, सुनने और समझने की व्यवस्थित तथा निरन्तर प्रक्रिया सम्मिलित होती है
मेफ्फारलेण्ड के अनुसार, "संचार को विस्तृत रूप में मानवीय पहलुओं के मध्य अर्थपूर्ण बातों का विनिमय कहने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। विशिष्टता यह यह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानवीय पहलुओं के मध्य समझ को पहुंचाई जाती है तथा अयों को समझा जाता है।“


संचार की प्रकृति (Nature of communication)

1.संचार  यह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी संगठन या प्रणाली के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। इसके द्वारा व्यक्तियों, समू एवं विभागों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इससे प्राप्त जांकड़ों और सूचनाओं का आदान-प्रदान मुख्य रूपवे विभाग के उपविभागों में, उपविभागों से व्यक्तियों या समूहों को किया जाता है।
 2.संचार की प्रकृति अन्तर्सम्बन्धों एवं संदेशों को परस्पर अदला बदली की होती है। सचार लिखित, मौखिक, श्रव्य और दृश्य आदि हो सकता है।
3.संचार का मुख्य उद्देश्य यह है कि सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश को मूल रूप और मूल दृष्टिकोण से समझे जैसा संचारक (प्रेषक) ने भेजा है।
 4.संचार तभी प्रभावी हो सकता है जब प्राप्तकर्ता द्वारा पूर्ण रूप से समझ लिया जाता है। जब तक ऐसा नहीं होता संचार की प्रकृति पर विचार करते समय यह प्रश्न उठता है कि यह कला है या विज्ञान ? 
किसी विषय विशेष से सम्बन्धित व्यवस्थित एवं कमवद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं। ज्ञान वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होना चाहिए, जबकि कला एक ऐसा कौशल है जिसे अभ्यास के द्वारा प्रभावी ढंग से विकसित किया जाता है। 
इन परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में हम पाते हैं कि चार प्रक्रिया को सम्पूर्ण एवं प्रभावी बनाने के लिए क्रमबद्ध ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रस्तुत करने की अभिव्यक्ति भी आवश्यक है। इसे अभ्यास द्वारा और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
 इस प्रकार हम पाते हैं कि संचार कला और विज्ञान दोनों का मिश्रण है। संचार को पुरानी कला और नया विज्ञान कहा जाता है। संचार की प्रकृति क ला और विज्ञान दोनों की है।

संचार की विशेषताएँ (Characteristics of Communication)

  • संचार एक मानवीय प्रक्रिया है इसलिए पशु-पक्षियों द्वारा की गई संचार प्रक्रिया को संचार के क्षेत्र से बाहर ही रखा जाता है। संचारएक मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक प्रणाली है। संचार के लिए कम से कम दो पक्षों प्रेक्षक और प्राप्तकर्ता का होना आवश्यक होता है।
  • संचार के लिए कुछ सूचनाएँ तथा विचार, निर्णय, भावनाएँ इच्छा या संवेग होना आवश्यक है। संचार प्रेषक और प्राप्तकर्ता केप्रभावित करता है। अतः इसमें अन्तः क्रिया होती है। 
  • संचार सदैव गत्यात्मक होता है।
  • संचार में उपयुक्त माध्यम का चयन सोच-समझ कर करना चाहिए। संचार के साधन कई प्रकार के हो सकते हैं-मौखिक, लिखित या संकेत और इशारे संचार का अर्थ सूचनाओं और संदेशों को एक व्यक्ति (समूह) से दूसरे व्यक्ति (समूह) तक भेजना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही यह जरूरी है कि सूचना को प्राप्तकर्ता उसी अर्थ में समझे जिस भाव में उसे सूचना दी गई है। संचार एक प्रक्रिया है। कभी न समाप्त होने वाली संचार प्रक्रिया लगातार विद्यमान रहती है।
  • आधुनिक युग में अनेक संचार माध्यम प्रयोग में लाए जाते हैं। सूचना क्रांति के वर्तमान युग में संचार के लिए परम्परागत माध्यम जैसे- पत्राचार, रेलीफोन, समाचार पत्र के साथ-साथ तीव्र गति वाले आधुनिक संचार माध्यम जैसे- टेलीफेंक्स, इंटरनेट, ई मेल, वीडियो कान्फ्रेंसिंग प्रयोग में लाए जा रहे हैं। मोबाइल फोन के प्रयोगकर्ताओं की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। संचार की क्रान्ति ने विश्व को इतना निकट कर दिया है कि इसे वैश्विक गाँव की संज्ञा दी जाने लगी है। 
  • संचारका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। यह एक अन्तर्षिक प्रक्रिया है, जिसमें अनेक कारकों का मिश्रण है। संचार को गठन कातन्त्रका तन्त्र भी कहा जाता है।

संचार के तत्व (Elements of Communication)

  • 1 संवाददाता (Transmitter)- संचार प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग वह व्यक्ति होता है जो सूचना या संवाद देता है। इस प्रकार संवाददाता से तात्पर्य संवाद देने वाले से है। पूर्ण एवं सही संचार के लिए यह आवश्यक है कि संवाद, संवाददाता के मस्तिष्क में स्पष्ट होने चाहिए।
  • 2. संवाद प्राप्तकर्ता (Receiver) संवाद प्राप्तकर्ता से तात्पर्य संवाददाता से संवाद प्राप्त करने वाले से है। संचार प्रक्रिया के लिए संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता दोनों का होना अत्यावश्यक है। संचार की क्रिया तभी सम्पूर्ण होती है जब संवाददाता में संवाद प्राप्तकर्ता द्वारा संवाद प्राप्त कर लिया जाता है।
  • 3. संवाद (Message)- संवाद संधार की विषय-वस्तु का नाम है। संवाद से तात्पर्य उस विचार या सूचना से है जो संवाददाता द्वारा संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेषित की जाती है। संवाद से वही अर्थ स्पष्ट होना चाहिए जो संवाददाता के मस्तिष्क में है।
  • 4. साधन (Medium of Transmission)- इससे तात्पर्य ऐसे माध्यन या साधन से है जिसके द्वारा संवाददाता संवाद प्राप्तकर्ता को संवाद का प्रेषण करता है। संवाददाता द्वारा संवाद प्राप्तकर्ता को संवाद देने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता है। इनमें गौखिक एवं लिखित दोनों ही तरह की संचार विधियों शामिल हैं।
  • 5. प्रतिक्रिया (Reaction)-इससे तात्पर्य संवाददाता द्वारा प्रेषित किए गए संवाद, विचार या सूचना का संवाद प्राप्तकर्ता पर प्रभाव से है। संचार का ध्येय केवल सपाद देना ही नहीं है अपितु व्यवसाय में इसका उद्देश्य संवाद के अनुसार कार्यवाही कार्य करना, उसकी (संवाद प्राप्तकर्ता) संवाद के प्रति प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है। संवाद प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया संवाद को भाषा एवं उसे दिए जाने वाले समय आदि पर निर्भर है। यदि संवाद अपने सही अर्थ में नहीं समझा गया है, अपर्याप्त है, अवांछनीय है तो उसके प्रति संवाद प्राप्तकर्ता की अनुकृत प्रतिक्रिया की आशा नहीं की जा सकती है।


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