संचार के उद्देश्य (Objectives of Communication)
- 1. संस्था में कार्यरत कर्मचारियों को उनके कार्यों के सम्बन्ध में स्पष्ट एवं उपयुक्त निदेश आदेश एवं सूचनाएं प्रदान करना।
- 2. कर्मचारियों को संस्था की प्रगति में रखना।
- 3. संस्था को नीतियों योजनाओ तथा कार्यक्रमों से कर्मचारियों को पूर्ण कराना ताकि किसी कठिनाई या दिक्कत के समय सम्बन्धित अधिकारी से सम्पर्क स्थापित किया जा सके।
- 4.संस्था के प्रबन्ध के सम्बन्ध में कर्मचारियों से आवश्यक सूचनाएं तथा सुझाव प्राप्त करना।
- 5. कर्मचारियों के आवगमन को कम करना तथा बंद करने का प्रयास करना।
- 6. कर्मचारियों की कार्य के प्रति इच्छा जागृत करना तो उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि का विकास करना।
- 7. संस्था में किसी भी प्रकार के परिवर्तन जैसे कार्य करने के तरीकों, उपकरणों और अवस्याओं आदि में परिवर्तन के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना तथा कर्मचारियों को परिवर्तन स्वीकार करने के लिए तैयार करना।
- 8 कर्मचारियों के विकास तथा प्रगति के सम्बन्ध में आवश्यक तत्व तथा आकड़े प्रस्तुत करना ।
संचार के सिद्धान्त (Principles of Communication)
संचार के प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं
- 1. स्पष्टता (Clarity)- संवाददाता द्वारा संवाद प्राप्तकर्ता के लिए जो भी सन्देश या सूचना संचारित की जाए यह पूर्णतया स्पष्ट होनी चाहिए। बहुत सी संस्थाएं ऐसी होती हैं जो संचार में अपनी निजी भाषा का भी प्रयोग करती है जिसमें सामान्य शब्द किसी विशिष्ट अर्थ का बोध कराने लगते हैं। कभी-कभी कुछ बृहद संस्थाओं में आदेश देने वाले और आदेश पाने वाले के मध्य संगठनात्मक दूरी होने के कारण भी संबाद की स्पष्टता में कमी आ जाती है। अतः संगठन के प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों को उच्च अधिकारियों से प्राप्त सूचना को अधीनस्थ अधिकारियों तथा कर्मचारियों को भेजने से पूर्व और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।
- 2. अनुकूतना (Consistency)- किसी संस्था में संवाददाता द्वारा संचारित सूचनाएं संस्था की नीतियों, उद्देश्यों एवं कार्यक्रमोंसे यथोचित रूप में मिलती-जुलती होनी चाहिए अर्थात् सूचनाएं परस्पर विरोधी नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार सूचनाएँ संस्थापर अनुकूल प्रभाव रखने वाली होनी चाहिए। (
- 3. पर्याप्तता (Adequacy) संवाददाता द्वारा संचारित सूचनाओं के प्रवाह की मात्रा उपयुक्त तथा पर्याप्त होनी चाहिए अर्थात न तो अत्यन्त कम होनी चाहिए और न ही अधिक योशित होनी चाहिए। सूचना की पर्याप्तता उसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति की मानसिक क्षमता पर निर्भर करती है। सूचना को पर्याप्तता का मागन किसी कार्य के सम्बन्ध में कुल प्राप्त सूचनाओं तथा प्रयोग में लाई गई सूचनाओं की मात्रा, आकार एवं विस्तार पर निर्भर करती है। कभी-कभी कम किन्तु लम्बी व जटिल सूचनाएं छोटी-छोटी अनेक सूचनाओं की अपेक्षा अधिक बोझिन सिद्ध हो जाती है।
- 4 समयानुकृतता (Timeliness) – किसी सूचना के सम्बन्ध में एक व्यक्ति की प्रतिक्रियाएं अलग अलग समय पर अलग अलग होता है।
- अतः प्रत्येक सूचना के संचार का यथासमय क्या होगा यह संस्था विशेष के आकार और स्वभाव के साथ-साथ परिस्थितियों मनोवैज्ञानिक धारणाओं तथा तकनीकी पहलुओं आदि पर निर्भर करता है।
- 5. प्रसारण (Distribution)-संचार के लिए जितना महत्व समय का निर्धारण करना है उससे कहीं बढ़कर महत्व प्रत्येक सूचना का उचित समय पर उचित व्यक्ति के पास पहुंचना है।
- समायोजन तथा एकरूपता में सन्तुलन (Balance between adaptability and uniformity)- यद्यपि इसमें तनिक सन्देह नहीं है कि सूचना के संचार में एकरूपता होने से संस्था का कार्य संचालन सरल एवं सुगम बनाता है फिर भी आज के परिवर्तनशील युग में व्यक्तियों तथा परिस्थितियों में पविर्तन होते रहने से संचार की एकरूपता पर जोर देना मुक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता।
- 7. अभिरुपि एवं स्वीकृति (Interest and acceptance) संचार का मुख्य ध्येय संवाद प्राप्तकर्ता में याचित प्रतिक्रिया जागृतकरना होता है। अतः संवाद प्राप्तकर्ता सुचना में अभिरुचि ते तथा सूचना को स्वीकार कर अनुकूल कार्य करे। इसके लिएयह आवश्यक है कि सूचना के संचार के पूर्व ही संवाददाता को यह विश्वास प्राप्त कर लेना चाहिए कि संवाद प्राप्तकर्ता में सूचना पाने की अभिरूचि तथा उसे स्वीकार कर अनुकूल कार्य करने की इच्छा है अथवा नहीं।
- 8. मध्यस्तरों की न्यूनता (Minimum levels) प्रत्येक व्यावसायिक संगठन में सामान्यतः संगठन चार्ट के आधार परसंचार प्रक्रिया का निर्धारण किया जाता है। इस संचार प्रक्रिया में संगठनात्मक स्थिति के अनुसार प्रेषक और प्रेषितके गयअनेक मध्यस्थ होते हैं जो विभिन्न स्तरों पर कार्य करते हैं।
- 9. प्रेषिती को स्थिति का ज्ञान (Know your audience)- संचार के इस सिद्धान्त के अनुसार सन्देश भेजते समय प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) की योग्यता, शिक्षा, भाषा, ज्ञान, संगठनात्मक स्थिति आदि सभी को ध्यान में रखना चाहिए। प्रेषक को पारस्परिक (Mutual understanding) उत्पन्न करने के लिए प्रेषित की इच्छाओं, भावनाओं, आवश्यकताओं सामाजिक रीति-रिवाजों आदि को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- 10. सामान्य स्रोत (General Sources) संचार के इस सिद्धान्त के अनुसार जहाँ तक सम्भव हो सन्देशों के संचार के सामान्य सपनों से ही काम लिया जाना चाहिए। यदि सूचनाओं सन्देशों आदि के संचार में सामान्य साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता तो कर्मचारी अन्योती से सूचनाओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे जिससे सन्देशों के विकृत, अशुद्ध एवं भ्रामक होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- 11. लचिलता (Flexibility)- संचार के इस सिद्धान्त के अनुसार प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश सरल एवं स्पष्ट होने के साथ-साथलोचदार भी होना चाहिए। ऐसी संचार-व्यवस्था कोई महत्व नहीं रखती जो परिवर्तनों का समायोजन करने में असमर्थ रहतीहै।