ऐतरेयोपनिषद् के आधार पर 50 महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

ऐतरेयोपनिषद् के आधार पर 50 महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर 

1. ऐतरेयोपनिषद् किस वेद से संबंधित है?

उत्तर: यह ऋग्वेद से संबंधित है और इसे ऋग्वेदीय ऐतरेय आरण्यक के रूप में जाना जाता है।

2. पहले अध्याय के पहले खंड में किसका वर्णन किया गया है?


उत्तर: पहले खंड में परमात्मा द्वारा सृष्टि रचना का संकल्प और लोकों-लोकपालों की रचना का वर्णन किया गया है।


3. हिरण्यगर्भ से कौन उत्पन्न हुआ?


उत्तर: हिरण्यगर्भ से विराट् पुरुष और उसकी इन्द्रियों से देवताओं की उत्पत्ति हुई।


4. क्या किया गया था दूसरे खंड में?


उत्तर: दूसरे खंड में देवताओं के लिए आवास रूप मानव शरीर और अन्नादि की रचना का वर्णन किया गया है।


5. तीसरे खंड में किसका वर्णन किया गया है?


उत्तर: तीसरे खंड में उपास्य परमात्मा का निरूपण किया गया है और काया त्याग के बाद अमरपद प्राप्ति का वर्णन है।


6. सृष्टि के प्रारंभ में क्या था?


उत्तर: सृष्टि के प्रारंभ में केवल आत्मा (परमात्मा) था, अन्य कुछ भी सचेष्ट नहीं था।


7. सृष्टि के सृजन के बाद कौन से तत्व उत्पन्न हुए?


उत्तर: परमात्मा ने अम्भ, मरीचि, मर, और आपः लोकों की रचना की।


8. आपः को किस रूप में माना गया है?


उत्तर: आपः को सृष्टि के मूल क्रियाशील प्रवाह के रूप में माना गया है।


9. लोकपालों की रचना के बाद क्या हुआ?


उत्तर: लोकपालों की रचना के बाद परमात्मा ने पुरुष को मूर्तिमान रूप में उत्पन्न किया।


10. विराट् पुरुष के शरीर से क्या उत्पन्न हुआ?


उत्तर: विराट् पुरुष के शरीर से मुख, नासिका, नेत्र, कान, त्वचा, हृदय, मन, नाभि आदि अंग उत्पन्न हुए।


11. देवताओं ने परमेश्वर से क्या याचना की?


उत्तर: देवताओं ने परमेश्वर से उनके लिए आश्रय स्थल (शरीर) की रचना करने की याचना की।


12. परमेश्वर ने देवताओं के लिए कौन से शरीर बनाए?


उत्तर: पहले गो, फिर अश्व और अंत में मनुष्य शरीर बनाए गए।


13. मनुष्य शरीर में देवताओं का क्या स्थान था?


उत्तर: देवता मनुष्य के विभिन्न अंगों में स्थान पाए, जैसे वायु ने नासिका में, अग्नि ने मुख में आदि।


14. भूख और प्यास का क्या अर्थ है?


उत्तर: भूख और प्यास शरीर के प्रत्येक कोश में होती है और इनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।


15. अन्न का निर्माण कैसे हुआ?


उत्तर: परमात्मा ने अप् प्रवाह को तपाया और उससे अन्न का निर्माण हुआ।


16. अन्न को ग्रहण करने की प्रक्रिया में कौन-कौन सी चेष्टाएँ की गईं?


उत्तर: अन्न को वाणी, प्राण, नेत्र, श्रोत्र, त्वचा, मन, शिश्न, अपान आदि से ग्रहण करने की चेष्टाएँ की गईं।


17. अन्न को किस वायु ने अंततः ग्रहण किया?


उत्तर: अन्न को अपान वायु ने ग्रहण किया, जो अन्न का धारक है।


18. परमात्मा ने मानव शरीर में क्या देखा?


उत्तर: परमात्मा ने मानव शरीर में सब कुछ देखा और यह समझा कि यह शरीर ही परमात्मा का आवास है।


19. विदृति द्वार का क्या महत्व है?


उत्तर: विदृति द्वार को ब्रह्म रंध्र कहा गया है, जो आत्मा की परमात्मा से प्राप्ति का मार्ग है।


20. अन्न का ग्रहण किस माध्यम से किया जाता है?


उत्तर: अन्न को ग्रहण करने के लिए प्राण, वाणी, नेत्र, श्रोत्र, त्वचा, मन, अपान, शिश्न आदि की भूमिका है।


21. ब्रह्मा की रचना के बाद परमात्मा ने क्या किया?


उत्तर: ब्रह्मा की रचना के बाद परमात्मा ने उसका निरीक्षण किया और यह जाना कि मैं ही सर्व है, सबकुछ मेरे द्वारा ही संचालित है।


22. स्वप्नों का क्या महत्व है?


उत्तर: स्वप्नों को परमात्मा के तीन आश्रयस्थल माना गया है।


23. क्यों कहा गया कि "यही वह स्थल है"?


उत्तर: यह त्रिवाचा के रूप में कहा गया है ताकि शरीर को परमात्मा के आवास के रूप में स्थापित किया जा सके।


24. वेदों के ज्ञान को कैसे प्राप्त किया जाता है?


उत्तर: वेदों के ज्ञान को स्वाध्याय और ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।


25. सृष्टि के आरंभ में क्या चेष्टा हुई?


उत्तर: परमात्मा ने सृष्टि रचना के लिए संकल्प किया और उसके बाद लोकों की रचना हुई।


26. मृत्युः के अस्तित्व का क्या महत्व है?


उत्तर: मृत्यु का अस्तित्व जीवन चक्र का अभिन्न अंग है, जो सृष्टि के क्रम को संतुलित करता है।


27. किसका प्रतिफल अन्न है?


उत्तर: अप् प्रवाह से तपित होकर उत्पन्न होने वाला रूप अन्न का प्रतिफल है।


28. नाभि से किसकी उत्पत्ति हुई?


उत्तर: नाभि से अपान वायु की उत्पत्ति हुई।


29. शरीर में प्रकट होने वाले देवताओं का क्या कार्य था?


उत्तर: देवता शरीर के विभिन्न अंगों में स्थापित होकर जीवन और अस्तित्व की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।


30. "सोऽहम्" का क्या अर्थ है?


उत्तर: "सोऽहम्" का अर्थ है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। यह तत्वज्ञान और आत्मसाक्षात्कार का संकेत है।

31. आत्मा के अव्यक्त रूप से सृष्टि के आरंभ का संकेत किस मंत्र में दिया गया है?

उत्तर: "आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चन मिषत्" (1.1)


32. "नान्यत्किंचन मिषत्" का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि सृष्टि के आरंभ में केवल परमात्मा था, और कोई भी अन्य चेष्टा नहीं हो रही थी।


33. परमात्मा ने सृष्टि का संकल्प किस रूप में किया?

उत्तर: परमात्मा ने सृष्टि का संकल्प 'मैं लोकों का सृजन करूँ' के रूप में किया।


34. परमात्मा ने किन-किन लोकों का सृजन किया?

उत्तर: परमात्मा ने अम्भ, मरीचि, मर, आपः, द्युलोक, अन्तरिक्ष, पृथिवीलोक, और आपः लोकों का सृजन किया।


35. "अम्भ" शब्द का अर्थ क्या है?

उत्तर: अम्भ शब्द का अर्थ है प्राण और भरणकर्ता, जो सूक्ष्म प्राण का भरण करने वाला लोक है।


36. "आपः" का क्या प्रतीक है?

उत्तर: 'आपः' सृष्टि के मूल क्रियाशील प्रवाह के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसे ऋषि ने 'ताः आपः' कहा है।


37. लोकपालों की रचना किस तरह से हुई?

उत्तर: लोकपालों की रचना परमात्मा ने 'आपः' से एक पुरुष को निकालकर की।


38. विराट पुरुष के शरीर से कौन-कौन से अंग उत्पन्न हुए?

उत्तर: विराट पुरुष के शरीर से मुख, नाक, नेत्र, कान, त्वचा, हृदय, नाभि, शिश्न आदि अंग उत्पन्न हुए।


39. "मुख से वाक् इन्द्रिय और वाक् से अग्नि प्रकट हुई" का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि परमात्मा के विराट रूप के मुख से वाणी और अग्नि उत्पन्न हुई।


40. "प्राण से वायु उत्पन्न हुई" का क्या संदेश है?

उत्तर: इसका मतलब है कि प्राण और वायु के बीच गहरा संबंध है, और प्राण ही वायु के रूप में कार्य करता है।


41. शरीर के प्रत्येक अंग में देवताओं का निवास किस रूप में दिखाया गया है?

उत्तर: देवता प्रत्येक अंग के रूप में प्रविष्ट हुए, जैसे वाणी का रूप अग्नि, नेत्रों का रूप सूर्य आदि।


42. "ताभ्यः पुरुषमानयत्ता" का क्या अर्थ है?

उत्तर: इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने देवताओं के लिए मनुष्य रूपी शरीर की रचना की।


43. परमात्मा ने मनुष्य शरीर में देवताओं को कैसे स्थापित किया?

उत्तर: परमात्मा ने प्रत्येक देवता को मनुष्य के विभिन्न अंगों में स्थापित किया, जैसे अग्नि को मुख में, सूर्य को नेत्रों में, आदि।


44. "भूख और प्यास" के संदर्भ में किस संदेश का उल्लेख किया गया है?

उत्तर: भूख और प्यास का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, वे शरीर के प्रत्येक अंग में देवशक्तियों के साथ मिलकर कार्य करते हैं।


45. "अन्न का शरीर से संबंध" कैसे समझाया गया है?

उत्तर: अन्न के ग्रहण का पूरा प्रक्रिया शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से होती है, और वायु ही अन्न का धारक है।


46. परमात्मा के बारे में "कोऽहम्" प्रश्न का उत्तर क्या है?

उत्तर: "कोऽहम्" का उत्तर है "सोऽहम्", अर्थात मैं वही आत्मा हूं जो परमात्मा का अंश है।


47. "विदृति" का क्या अर्थ है?

उत्तर: विदृति का अर्थ है ब्रह्मरन्ध्र (मस्तिष्क का ऊपरी छिद्र) को विदीर्ण करके परमात्मा का प्रवेश।


48. "अन्न का ग्रहण और अपान वायु" के बीच क्या संबंध है?

उत्तर: अपान वायु ही अन्न को ग्रहण करने में सक्षम है, और यही वायु जीवन की रक्षा करती है।


49. "परमात्मा के तीन आश्रय स्थल" कौन से हैं?

उत्तर: तीन आश्रय स्थल हैं मस्तिष्क, हृदय, और नाभि ग्रंथि।


50. परमात्मा का "स्वप्न" क्या है और इसके तीन प्रकार क्या हैं?

उत्तर: परमात्मा का स्वप्न शरीर, ब्रह्माण्ड और परम व्योम के रूप में तीन रूपों में व्यक्त होता है।

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