Yoga in Purana ( पुराणों में योग)

पुराणो मे योग का वर्णन मिलता है। पुराणो की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गयी है। पुराणो की संख्या 18 बतायी गयी है। शिव पुराण में योग को इस प्रकार परिभाषित किया गया है -
‘‘निरूद्ध वृत्पतरस्य शिवे चितस्य निश्चला।
या वृत्तिः सा समासेन योगः स खलु पंचधा।।’’ 21 वाॅ अ0
अर्थात ् शिव में अपन े अन्तःकरण की समस्त वृत्तियो को निश्चय रूप से लगा द ेने का नाम ही योग है। शिव प ुराण में अष्टांग योग का वर्णन इस प्रकार से है -
‘‘अष्टांगो वा षंडगों वा सर्वयोगः समासतः।
यमश्च नियमश्चैव स्वस्ति काधां तथासनम्।।
प्राणायाम प्रत्याहारो धारणा ध्यानमेव च।
समाधिरिति योगांगान्याष्टावुक्तानि सुरिभिः।।’’
अर्थात ् योग क े आठ व छः अंग है। आठ अंग इस प्रकार से है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। 
अग्नि पुराण क े अनुसार - 
 अग्नि पुराण के द्वितीय खण्ड में अष्टांग योग का वर्णन मिलता है, तथा योग को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है -
‘‘ब्रहम प्रकाशकं ज्ञान योगस्तत्रैकचित्तता।
चित्त वृत्ति निरोधाश्च जीव ब्रहमात्मनो।।’’ अग्नि पुराण 183/1-2
अर्थात ् ब्रहम में चित्त की एकाग्रता ही योग है। 
मत्स्य पुराण क े अन ुसार - ‘‘कर्मयोग से उत्पन्न ज्ञान क े द्वारा परम पद (समाधि) की प्राप्ति होती है।’’
ब्रहम पुराण के अन ुसार - ब्रहम पुराण में योग क ेअभ्यास कैसे किये जाए इसका वर्णन किया गया है। 
व्यास जी क े अन ुसार - बहुत समय तक एक ही समय में आहार ग्रहण करन े वाला विशुद्ध आत्मा से युक्त योगी बल की प्राप्ति किया करत े है। तथा काम, क्रोध, शीतउष्ण आदि सभी प्रकार के द्वन्दो, विषयो को जीतकर धारणा, ध्यान, समाधि का सतत ् अभ्यास कर समाधि की सिद्धि प्राप्त करत े हैं।
श्रीमद ्भगवद् पुराण क े अन ुसार - श्रीमद ्भगवद ् पुराण में भी अन ेक जगह योग का वर्णन किया गया है -‘‘योग द्वारा इन्दि ्रय, प्राण, मन, बुद्धि का नियमन ही योग है।’’ 
2/1/18
विष्णु पुराण क े अन ुसार - विष्णु पुराण में यम, नियम का वर्णन इस प्रकार से किया गया है - 
‘ब्रहमचर्यमंहिसां .............................कामे निष्कामाणां विमुक्तिदा।।’’ वि0 पु0 6/7/36-38
अर्थात ् अपने मन को निष्काम भाव से योगी ब्रहमचर्य, अहिंसा, सत्य, अस्त ेय और अपरिग्रह में लगाये, तथा मन का निग्रह का योगी स्वाध्याय, शौच, सन्तोष तथा तप करे, 
और ईश्वर प्रणिधान द्वारा मन को ईश्वर में लगाये। यम, नियमो का अभ्यास सकाम भाव से किये जाने पर विशेष बल देते है, तथा निष्काम भाव से विमुक्ति। इस प्रकार ‘‘यम, 
नियमादि का निष्काम भाव से पालन कर विमुक्ति प्राप्त करना ही योग है।’’ 
पुराण में भक्ति योग की महत्ता का वर्णन इस प्रकार से किया गया है - 
‘‘न युज्यमान यत ् भक्त्या भगवत्यखिलात्मनि।
सहशोऽस्ति शिवो पन्थाः योगीनां ब्रहमसिद्धये।।’’ 
भगवद पुराण 3/25/9
अर्थात ् ब्रहम प्राप्ति हेत ु अखिल आत्म स्वरूप भगवान मे कि की गयी भक्ति श्रेष्ठ 
है। यह भक्ति योग शिव के समान कल्याणकारी मार्ग है।

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